वक्त बिकाऊं है खरीदार चाहिए........सुधि सिद्धार्थ के साथ विशेष

कहते है वक़्त की हर शय गुलाम होती हैं..मगर अब ये आपका गुलाम हो सकता है ,जरूरत है तो बस वक़्त की मंडी मे आने की, हर तरह का वक़्त मिलता है यहां सौ रुपए घंटा, हज़ार रूपए घंटा, और तो और एक एक मिनट भी..मगर कुछ लोग ऐसे भी है जो सूनी निगाहों से खरीदारों को इस उम्मीद से देखते है की शायद आज का पूरा दिन 80 रूपए में ही बिक जाये..बस बोली लगाईये और वक़्त के खरीदार बन जाईये.....पहले वक़्त गुजरता था मगर आज वक़्त बिकता है.. कभी घंटो गुजर जाते थे उधड़े रिश्तो को बुनने मे,रूठी उम्मीदों को मानाने मे, छोटी बहन को सताने मे और शाम को माँ के साथ खाना बनाने मे और याद है वो दिन, शहर के नुक्कड़ पर बने पुराने कॉफी हॉउस मे दोस्तों के साथ लड़ना झगड़ना और आंखों मे छोटे छोटे सपने जाना....सपनो को सजाने की चाहत में मैं भी कब इस मंडी की सजावट बन गई पता ही नहीं चला..आज यही एक कोने में खड़ी अपना वक़्त बेच रहीं हूं 9 घंटे बिक चुके हैं और 10 घंटो की अभी भी गुंजाईश है....कोई है खरीदार क्यूंकि ये वक़्त बिकाऊं है...
2 Responses
  1. anjule shyam Says:

    time hai abhi bahut hai............
    aaj nahi kal karenge .kal nahi parso.....puri life gujar jati hai. han bus kuch buchpan ke kubsutrt lamhe yaado ke nagine mein saje se rah jate hai............
    anjule shyam maurya


  2. ठहरे हुए पानी ने इशारा तो किया था
    कुछ सोच के खुद मैंने ही पत्थर नहीं फेंके...
    वैसे तो इरादा नहीं तोबा शिकनी का
    लेकिन अभी टूटे हुए साग़र नहीं फेंके...


  • EXCLUSIVE .....:

    salaazmzindagii

    अशोक जी को कोटि कोटि नमन -- सलाम ज़िन्दगी टीम miss u ashok sir

    ASHISH JAIN


    सुधी सिद्धार्थ ..........

    ज़िन्दगी का हिस्सा बनें और कहें सलाम ज़िन्दगी

    सलाम ज़िन्दगी को जाने ..

    मेरी फ़ोटो
    वर्तमान में एक न्यूज़ चैनल में कार्य कर रहा हूँ,पत्रकारिता की शुरुआत जनसत्ता से की .जहा प्रभाष जोशी, ओम थानवी और वीरेंद्र यादव के साथ काम करने का मौका मिला ,उसके बाद पत्रकारिता की तमाम गन्दगी को अपनी आँखों से देखते हुए आज तक में ट्रेनिंग करने का अवसर मिला वहा नकवी जी,राणा यसवंत ,अखिल भल्ला ,मोहित जी के साथ काम किया तक़रीबन ६ महीने वहा काम करने के बाद आँखों देखी से होते हुए एक बड़े न्यूज़ चैनल में एक छोटा सा कार्य कर रहा हूँ या दूसरे शब्दौं में कहूँ तो मन की कोमलताओं को हर रोज़ तिल तिल कर मार रहा हूँ ,लिखने का शौक है ,कुछ अखबारों में सम्पादकीय भी लिखे है ,लेकिन हकीकत यही है की आँखौं से बहते हुए आसूँ इतनी तकलीफ नहीं देते जितनी पलकों पर रुके हुए मोती करते है ,शायद इसीलिए मैं आज जहा हूँ ,वहा से सिर्फ अँधेरा दिखता है ......ASHIISH JAIN