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मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना........सारिका चौहान के साथ

बचपन से ही इकबाल का लिखा ये गीत हम गाते आ रहे हैं लेकिन हर बार कोई ना कोई इसे झूठलाने में लगा रहता है... चाहे सन 84 के दंगे हों या गुजरात के दंगे या हाल ही में एक सो कॉल्ड फेमस एक्टर का ये कहना की उसे सिर्फ इस वजह से फलां सोसायटी में मकान नहीं मिल रहा क्योंकि वो किसी पर्टिकुलर कॉम से ताल्लुक रखता है... और ये ख़बर आते ही जैसे सारे न्यूज़चैनल्स को तो जैसे एक ज्वलंत मुद्दा मिल गया हो बकायदा ब्रेकिंग न्यूज चली, फिर तो क्या फोनो, लाइ यहां तक कि उस एक्टर की पीसी... और शाम 8 बजे से लेकर रात 11 बजे तक जो की प्राइम टाइम होता है हर नेशनल चैनल पर डिबेट्स हुए हल कुछ नहीं निकला बस आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा... गड़े मुर्दे निकलने लगे लेकिन क्या उसका कोई हल निकला, नहीं.. एक दो लोग जहां पक्ष में आकर बोलने लगे वहीं कितनो ने उसका खंडन किया... और फिर उस एक्टर पर धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में केस भी दर्ज हो गया... कुछ दिन बीतेंगे और फिर लोग इस बात को भूल जाएंगे फिर सब एक दूसरे त्यौहारों में शामिल होंगे... आपको लगेगा कि मैंने लोगों के दर्द को देखा नहीं है इसलिए मैं समझ नहीं सकती और ये बात सही भी है लेकिन मेरी upbringing ही ऐसे माहौल में हुई है... मैं डिफेंस बैकराउंड से हूं जहां लोग जाति-पाति, कौम या आप किस राज्य को belong करते हैं ये कोई मायने नहीं रखता... खैर मैं यहां थोड़ी पर्सनल हो गई लेकिन एक चीज़ जिसकी मुझे खुशी है कि ये जो भी वाक्या हुआ उसे लोग थोड़े दिनों में भूल जाएंगे और सचमुच ये गीत फिर हमारी ज़िंदगी में उतर जाएगा मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिंदी हैं हम हिंदोस्तां हमारा...
सलाम ज़िन्दगी के लिए

सारिका चौहान


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    मेरी फ़ोटो
    वर्तमान में एक न्यूज़ चैनल में कार्य कर रहा हूँ,पत्रकारिता की शुरुआत जनसत्ता से की .जहा प्रभाष जोशी, ओम थानवी और वीरेंद्र यादव के साथ काम करने का मौका मिला ,उसके बाद पत्रकारिता की तमाम गन्दगी को अपनी आँखों से देखते हुए आज तक में ट्रेनिंग करने का अवसर मिला वहा नकवी जी,राणा यसवंत ,अखिल भल्ला ,मोहित जी के साथ काम किया तक़रीबन ६ महीने वहा काम करने के बाद आँखों देखी से होते हुए एक बड़े न्यूज़ चैनल में एक छोटा सा कार्य कर रहा हूँ या दूसरे शब्दौं में कहूँ तो मन की कोमलताओं को हर रोज़ तिल तिल कर मार रहा हूँ ,लिखने का शौक है ,कुछ अखबारों में सम्पादकीय भी लिखे है ,लेकिन हकीकत यही है की आँखौं से बहते हुए आसूँ इतनी तकलीफ नहीं देते जितनी पलकों पर रुके हुए मोती करते है ,शायद इसीलिए मैं आज जहा हूँ ,वहा से सिर्फ अँधेरा दिखता है ......ASHIISH JAIN