हमने कहा सलाम ज़िन्दगी ...और आपने {विशेष }

सौ सवा सौ से ज्यादा चैनल, चौबीस घंटे चलने वाला प्रसारण, रोज अपनी जिन्दगी से कुछ नया सीखने वाले मीडियाकर्मी, और करोड़ों की संख्या में अपने घर पर टीवी के सामने बैठे लोग..... यहीं से शुरू होता है ख़बरों की दुनिया का कारवां। हम भी एक न्यूज चैनल में काम करते हैं, ख़बरों की हमारी ज़िन्दगी में अहम जगह है। हर रोज हम कुछ ऐसी चीजों से रू-ब-रू होते हैं जो ज़हन मे कई सवाल छोड़ जाती है, कुछ के जवाब मिलते है और कुछ सवाल हर रात हमारे जहन में ही सो जाते है । उन्ही के जवाब ढूंढ़ने के लिए शुरू हुआ हमारा ये सफर जहां से आगे बढ़ते हुए हमने मीडिया के कई दिग्गजो को पढ़ा कई मैग्जीन और अख़बारों का सहारा लिया..मगर फिर भी दिल के दरवाजे पर सवाल लगातार दस्तक देते रहे। हर जगह कुछ न कुछ अलग था मगर एक चीज़ कॉमन थी, वो सभी मानते हैं कि मीडिया एक अनिवार्य बुराई है... हम आज भी नहीं समझ सके कि.. बीस हजार करोड़ रुपये का विज्ञापन उद्योग, साठ हजार करोड़ का मनोरंजन उद्योग, दस अरब रूपय से ज्यादा का टीवी उद्योग, वाली मीडिया की इस दुनिया में अच्छाई की कोई जगह नहीं, वो मीडिया जो देश की सरकारों को चलाता-बिठाता, गिराता-बनाता है, वह जो आम आदमी का एजेंडा और जीवनशैली तय करता है, वह जो नई पीढी का माता-पिता और गुरू है, जो आम आदमी की आवाज है और जो समाज की बुराई को हटाने वाला समाज सेवी है वो सिर्फ एक अनिवार्य बुराई है...क्या इसका कोई दूसरा पहलू नहीं है, इस बार जवाब खुद से मिला कि अगर ये एक अनिवार्य बुराई है, तो अनिवार्य अच्छाई भी है ।मीडिया के बिना भारत का चेहरा खूहबसूरत नहीं लग सकता। मगर वहीं दूसरी तरफ पत्रकारिता की आवाज को बुलंद करने वाले दिग्गज ही कहते नज़र आते हैं, ' भईया अब तो बस पैसा कमाना ही हमारा काम रह गया है पत्रकारिता तो बस नाम की करते हैं।' तो बताइए उन्हे क्या करना चाहिए जो आज भी इस क्षेत्र में अपने भविष्य को सवारना चाहते हैं या फिर जिन्होने अभी-अभी अपना करियर शुरू किया है। हम सोचते है इंसान को मारने की वजाय उसके सपनों को मारना ज्यादा दर्द देता है। ऐसे बहुत सारे सवाल हमें दिन रात परेशान करते हैं क्या हम इसकी दूसरी तस्वीर को देखने की कोशिश नहीं कर सकते। परिस्थति में ढ़लने से बेहतर नहीं होगा तस्वीर में कुछ और रंग भरे जाए बस इतना समझने की कोशिश कर ही रहे थे की इसी दौरान पत्रकारिता के एक महान नामी पत्रकार ने एक बहुत ही जानी-मानी न्यूज साईट पर लिखा "गलती हर किसी से होती है पत्रकारों से भी हो जाती है मगर इसका मतलब ये नहीं की हमे मीडिया की सीमा निर्धारित कर देनी चाहिए" उस दिन पहला सवाल सामने आकर आंखे दिखाने लगा कि क्या हम किसी गलत जगह आ गए हैं हमें समझ नहीं आया कि वो किसकी गलती की वकालत कर रहें है उन पत्रकारों की जिनकी एक-एक बात लोगों पर गहराई से असर करती है क्या उनको नहीं पता न्यूज़ चैनल पर चलने वाली एक-एक ख़बर का असर इतना भी हो सकता है कि लोग अपनी जान भी दे देते हैं..मान्यवर ये एक ऐसी जगह है जहां गलतियों की कोई गुंजाईश नहीं हैं..वो कहते है कि आज अगर नज़रें दौड़ाओं तो न्यूज़ रूम में कोई पत्रकार नहीं नज़र आता..यहां तो बस लगता हैं ख़बरों का बाजार और काम करने वाले लोग हैं व्यापारी, जो चंद कागज के टुकड़ों के लिए ख़बरों को बेच देते हैं...इनका ये चेहरा कौन दिखाएगा..और गलती से मीडिया की हस्ती को, किसी मंच पर अपना भाषण देने को मिल जाए तो अंदर की आग को ऐसे उगलेंगे मानो बस इन्हें मौका नहीं मिला, नहीं तो पूरी दुनिया को ठीक कर देते..हमें समझ नहीं आता कि कहने वाले ये क्यों भूल जाते है कि वो भी इन व्यापारियों की जमात में शामिल हैं, आखिर क्यों सब सिर्फ समस्याओं की बात करता है ? हम इन सारी बातों को सिर्फ समझते ही नहीं बल्कि इन्हीं के साथ जीते हैं। हम तो बस इतना जानते है कि किसी भी देश में दो तरह के गद्दार होते हैं पहला-जो खुद अपनी मां को बेचता हैं दूसरा- जो अपनी आंखों के सामने अपनी मां को बिकते देखता हैं। दूसरे वाले ज्यादा ख़तरनाक है क्योंकि वो 'कायर' गद्दार हैं। संसद में विश्वासमत पारित होने के समय सारे नेता अपनी मां को बेच रहे थे और मीडिया अलग-अलग अंदाज में दिखा रहा था। आगे कुछ नहीं कहेंगे आप खुद समझदार हैं। हम मीडिया की अच्छाई या बुराई पर बहस नहीं कर रहे हैं, और कर भी नहीं सकते, अभी तो हमारे सफर की शुरूआत है वो कहते हैं न कि 'थोड़े कच्चे हैं' हम तो आप सबकी मदद चाहते है ताकि इस दुनिया में रहने के बाद भी जिन सवालों के जवाब आज तक नहीं मिले वो शायद मिल जाए हम मीडिया के उन्ही दिग्गजों से जानना चाहते है कि आखिर हम क्या करें..?
राय जरुर दे
17 Responses
  1. बेनामी Says:

    आपका लेख पढ़कर लगा जैसे मैं खुद अपनी बात कह रहा हूं आपको पहले भी एनडीटीवी पर पढ़ा है...अगर इन सवालों के जवाब मिल जाए तो हमें भी बता दीजिएगा


  2. बेनामी Says:

    kyaa baat hai sudi ji


  3. बेनामी Says:

    gud one....nice


  4. बेनामी Says:

    आपके सवाल में तो छिपा है जवाब... मीडिया एक अनिवार्य बुराई है...
    अक्सर लोग मुझसे भी पूछा करतें हैं.... मीडिया तो ज़माने भर के नकाबों को उतारता है... लेकिन खुद मीडिया के चेहरे का नकाब कौन उतारेगा... कौन बताएगा की कितनी गंदगी है इस इंडस्ट्री में...
    सोच कर देखिएगा आप भी...
    खैर चैनल की नौकरी की भागमभाग के बाद भी आप अब तक ये सोच पा रहे हैं इसलिए बधाई...
    शुभकामनायें....
    www.nayikalam.blogspot.com



  5. दिनेश काण्डपाल Says:

    ये चिन्तायें उन सभी की हैं जो इस वक्त मीडिया में हैं। खास कर हिन्दी मीडिया की। चाहे एक वर्ष का अनुभव लिये लोग हों या 10-11 साल के अनुभव वाले पत्रकार। सब के मन में यही चिन्ता है। सवाल जब संतृप्त हो जायेंगें जवाब आ जायेगा। सवाल करना मत छोड़िये...अवचेतन से अचेतन और चेतन उल्टा ही सही..जो भी घुमड़ रहा है..सच है


  6. बेनामी Says:

    speechless


  7. Unknown Says:

    aapke lekh ka to jawab hi nahin.jald hi dusre article ka intzar hai .-


  8. लेख उत्कृष्ठ है लेकिन यही ज़िंदगी है हमारी क्या कर सकते हैं.



  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.


  10. भाई आशीष,
    तुम लोगों का ब्लाग बहुत संुदर है। इसकी सबसे खूबसूरत बात है कि यह एक सामूहिक प्रयास है।
    तुम्हारी साथी पत्रकार ने जो सवाल उठाए हैं उसे देख कर लगता है कि तुम लोग सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ रहे हो।

    तुम्हें वो पुरानी कहावत याद होगी कि,
    एक-एक कर हर लकड़ी को तोड़ना आसान होता है लेकिन लकड़ियों के बण्डल को तोड़ना लगभग नामुमकिन होता है। इसलिए अपनी एकता को किसी भी लालच या स्वार्थ से बचाए रखना। इससे तुम सब को बल मिलेगा।


  11. सुधी

    फिलहाल तो यही कहुँगा कि आप मेन लाइन मीडिया के साथ ही अल्टरनेटिव मीडिया से लगातार सम्पर्क बनाए रखें। हो सके तो उसे मजबूत करने मंे अपना संभव योगदान करें। इससे आपके कई प्रश्नों के जवाब स्वतः मिल जाएंगे।

    आप को इस पर ध्यान देना चाहिए कि हमारे देश में जिसे आप और हम मीडिया कहते हैं उसे स्थापित हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है। इसके बावजूद हमारे यहाँ मीडिया के चाल-चरित्र को लेकर बहसें शुरू हों गई हैं। एक बहस तो हाल ही में मोहल्लालाइव पर ही हुई है। धीरे -धीरे यह बहस मेन लाइन मीडिया मे जगह बनाएंगी। और इन बहसों के प्रभाव से मीडिया के आंतरिक चरित्र में बदलाव आना अवश्यंभावी हो जाएगा।


  12. Rachana Says:

    Keep it up. Your bright future awaits you.


  13. बेनामी Says:

    ले आउट के अलावा सब बकवास........


  14. बेनामी Says:

    ले आउट के अलाव सब बकवास....अभी तुमने दुनिया देखी कहां है..


  • EXCLUSIVE .....:

    salaazmzindagii

    अशोक जी को कोटि कोटि नमन -- सलाम ज़िन्दगी टीम miss u ashok sir

    ASHISH JAIN


    सुधी सिद्धार्थ ..........

    ज़िन्दगी का हिस्सा बनें और कहें सलाम ज़िन्दगी

    सलाम ज़िन्दगी को जाने ..

    मेरी फ़ोटो
    वर्तमान में एक न्यूज़ चैनल में कार्य कर रहा हूँ,पत्रकारिता की शुरुआत जनसत्ता से की .जहा प्रभाष जोशी, ओम थानवी और वीरेंद्र यादव के साथ काम करने का मौका मिला ,उसके बाद पत्रकारिता की तमाम गन्दगी को अपनी आँखों से देखते हुए आज तक में ट्रेनिंग करने का अवसर मिला वहा नकवी जी,राणा यसवंत ,अखिल भल्ला ,मोहित जी के साथ काम किया तक़रीबन ६ महीने वहा काम करने के बाद आँखों देखी से होते हुए एक बड़े न्यूज़ चैनल में एक छोटा सा कार्य कर रहा हूँ या दूसरे शब्दौं में कहूँ तो मन की कोमलताओं को हर रोज़ तिल तिल कर मार रहा हूँ ,लिखने का शौक है ,कुछ अखबारों में सम्पादकीय भी लिखे है ,लेकिन हकीकत यही है की आँखौं से बहते हुए आसूँ इतनी तकलीफ नहीं देते जितनी पलकों पर रुके हुए मोती करते है ,शायद इसीलिए मैं आज जहा हूँ ,वहा से सिर्फ अँधेरा दिखता है ......ASHIISH JAIN