फ़ितरत
एक दिन चलते-चलते मैं रुकी....
पीछे मुड़कर देखा,फिर वही ग़म खड़ा था...
घबरा के मैंने उससे पूछा...
"कब से चल रहे हो, थक नहीं गए ?

"ग़म ने मुस्कुराकर मेरे चेहरे को देखा
और बोला- कैसी फितरत है तुम इंसानों की
कोई साथ हो फ़िर भी ग़म है,
कोई साथ न हो फिर भी ग़म है...

सुधी सिद्धार्थ
8 Responses
  1. बेनामी Says:

    offf...dard dikh raha hai


  2. बेनामी Says:

    साला इंसानों से अच्छा तो गम ही ठहरा... कम से कम साथ है तो साथ ही चिपका रहता है... इंसानों की फितरत से दूर...
    काश गम को भी इंसानों का ये रोग लग जाये....
    www.nayikalam.blogspot.com



  3. Unknown Says:

    dear achchi nazm hai..... par shuruvat hi gam ko sath lekar chal di abi use aaram karne do..... watever ur blog is mast keep writing.......


  4. और बोला- कैसी फितरत है तुम इंसानों की
    कोई साथ हो फ़िर भी ग़म है,
    कोई साथ न हो फिर भी ग़म है...

    BADHIYA HAI


  5. masha-allah... kya khoob likha hai apne... such kahoo toh dil jeet liya.


  6. Unknown Says:

    अच्छा लिखा है आपने...


  7. ritu raj Says:

    बहुत सुंदर रचना


  • EXCLUSIVE .....:

    salaazmzindagii

    अशोक जी को कोटि कोटि नमन -- सलाम ज़िन्दगी टीम miss u ashok sir

    ASHISH JAIN


    सुधी सिद्धार्थ ..........

    ज़िन्दगी का हिस्सा बनें और कहें सलाम ज़िन्दगी

    सलाम ज़िन्दगी को जाने ..

    मेरी फ़ोटो
    वर्तमान में एक न्यूज़ चैनल में कार्य कर रहा हूँ,पत्रकारिता की शुरुआत जनसत्ता से की .जहा प्रभाष जोशी, ओम थानवी और वीरेंद्र यादव के साथ काम करने का मौका मिला ,उसके बाद पत्रकारिता की तमाम गन्दगी को अपनी आँखों से देखते हुए आज तक में ट्रेनिंग करने का अवसर मिला वहा नकवी जी,राणा यसवंत ,अखिल भल्ला ,मोहित जी के साथ काम किया तक़रीबन ६ महीने वहा काम करने के बाद आँखों देखी से होते हुए एक बड़े न्यूज़ चैनल में एक छोटा सा कार्य कर रहा हूँ या दूसरे शब्दौं में कहूँ तो मन की कोमलताओं को हर रोज़ तिल तिल कर मार रहा हूँ ,लिखने का शौक है ,कुछ अखबारों में सम्पादकीय भी लिखे है ,लेकिन हकीकत यही है की आँखौं से बहते हुए आसूँ इतनी तकलीफ नहीं देते जितनी पलकों पर रुके हुए मोती करते है ,शायद इसीलिए मैं आज जहा हूँ ,वहा से सिर्फ अँधेरा दिखता है ......ASHIISH JAIN