एक दिन चलते-चलते मैं रुकी....
पीछे मुड़कर देखा,फिर वही ग़म खड़ा था...
घबरा के मैंने उससे पूछा...
"कब से चल रहे हो, थक नहीं गए ?

"ग़म ने मुस्कुराकर मेरे चेहरे को देखा
और बोला- कैसी फितरत है तुम इंसानों की
कोई साथ हो फ़िर भी ग़म है,
कोई साथ न हो फिर भी ग़म है...
सुधी सिद्धार्थ