मुझे इस फील्ड में आए महज़ 1.5 साल हुए हैं... आप ये जानकर हसेंगे कि मुझे ये लगता था कि जो हमारे टीवी पर लोग दिखते हैं मतलब रिपोर्टर और एंकर केवल यही लोग न्यूजचैनल्स में काम करते हैं... मुझे क्या अभी भी बहुत लोगों को यही लगता है जब हमारे घर कोई आता है और पूछता
है
कि तुम कहां काम करतो हो ? मैं बोलती हुं न्यूज़ चैनल में तो उनके मुंह से बस एक बात सुनने को मिलती है बेटा तुम्हें कभी टीवी पर नहीं देखा... फिर उन्हें मैं समझाती हूं कि केवल टीवी पर दिखनेवाले ही न्यूज़चैनल में काम नहीं करते बल्कि उसमें और लोगों की मेहनत भी शामिल होती है... मेरा एक मित्र है जो हमारे ही चैनल में विडियो एडिटर है उसकी मां का सपना है कि वो टीवी पर दिखे... लेकिन वो अपनी मां को कैसे समझाए की टीवी पर दिखने के अलावा भी लोग अपना कितना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं... जैसे जब कोई रिपोर्टर अपनी स्टोरी कर के आता है तो एक स्क्रिप्ट राइटर डिसाइड करता है कि उस स्टोरी को कैसे उठाना है, एक विडियो एडिटर जो उस स्टोरी को आकार देता है, पैकेजिंग के लोग जो वॉयस ओवर करवाते हैं देखते हैं कि कोई गलती तो नहीं जा रही कोई भी स्टोरी टाइम पर मिले, रनडाउन पर बैठा इंसान जो डिसाइड करता है कि स्टोरी को कितनी इंपोर्टेंस देनी है, पैनल पर बैठे लोग जो एंकर को कमांड देते हैं और देखते हैं कि ऑन एयर कोई गलती ना जाए इसके अलावा पीसीआर, एमसीआर और रन डाउन से कोऑर्डिनेट करना... इसके अलावा और भी कई लोग हैं जो न्यूज चैनल को चलाते हैं जिनके बगैर ये काम नहीं कर सकता टैक्निकल डिपार्टमेंट, ग्राफिक्स और भी कई लोग... आप मेरे इस आर्टिकल को पढ़कर आप सोच रहे होंगे कि इसमें एंकर की तो कई जगह ही नहीं दी गई दरअसल न्यूज़चैनल एक शिप है और एंकर उसका ANCHOR जो उस शिप को स्टेबल कर के रखता है... जो दर्शकों को बांधे रखता है... लोग किसी पर्टिकुलर एंकर को देखने के लिए उस न्यूज़चैनल को देखते हैं वो उस चैनल का एक्स फैक्टर होता है... जो दर्शकों को बांधे रखता है जिसकी वजह से उन सब लोगों की मेहनत रंग लाती है जो उस चैनल में काम कर रहे हैं तभी तो जो दिखता है वही बिकता है... सारिका चौहान
आप सही बात कही जो दिखता है वही बिकता है ।
यह लेख जितना पढने में मज़ा आया उससे अधिक यह जानकार ख़ुशी हुई की आपने मीडिया के उस पहलु को सामने लाया जो बताता है की यह मीडिया है जिसके पीछे हजारो लोग है जो भागते है -ख़बरों के लिए ,तेज़ धुप में ,तेज़ बारिश में और मुसीबत में ........यह सयोंग है की मेरे आस पास जो लोग है वो भी यहीं सोचते है की मीडिया सिर्फ एंकर ,रिपोटर तक ही सीमित है
सारिका जी पहले आपके लेख जो ब्लॉग में पहली बार लिखा है ,यह आपका पदार्पण हुआ ,आगाज़ शानदार है ,हम चाहेंगे अंजाम उससे ज्यादा शानदार हो ......
दिल से शुभकामनाये
आशीष जैन
sarika ji apka blog jagat main swagat hai,aur T.V ke team work ko pathko ke samne la kar acchi jankari di,apko lakho shubkamnaey.
Achaa laga jaan kar media se jude un tamaam logon ke baare mein jo peeche rah kar apne kaam ko anjaam dete hain.........
sach kaha
निरंतल लिखती रहें...
शुभकामनाएं...
:)
achchha likha hai magar publicity channel wale hi andaaz meN ki hai.
Gud luk.
लिखें।
अभिव्यक्ति और मुक्ति इस से है।
building chahe kitna hi sundar kyu na ho, neenv hamesha swatah mool roop men hota hai. use kavi v make-up karne ki jarurat mahsus nahi hoti magar usi ki bisat par sab kuchh kayam hai.
Desk pe kam karne wale aise hi hote hain
सही कहा आपने…
स्वागत है
बहुत सही कहा है जो दिखता है वही बिकता है मगर कई खरीदार पार्म्परिक नहीं होते हम तो उसे ढूँढ्ते रहते हैं जो दिखता नहीं aur dekho DHooMMDH bhee liya बहुत बहुत स्वागत और आशीर्वाद पहली रचना ही हि्ट और फिट है बधाई
बहुत खूब, चलिये इसी बहाने अन्दर की बात बाहर आ तो रही है आपका स्वागत है।
सही है
जो दिखता है वही बिकता है
_____________
स्वागत है
SAHI YE EK FACT HAI KI HUM SAB KE LIYE NEWS CHANNEL KA MATLAB SIRF TV SCREEN PAR DIKHNA HI HOTA HAI..LEKIN ASLI HAKIKAT YAHA KAAM KARKE HI PATA CHALTI HAI KI ANCHOR SIRF HUM SAB KO SCREEN PAR REPRESENT KARTA HAI...LEKIN IS PURE ARTICAL MAI TUM KAHI ASSIGNMENT KA JIKAR KARNA BHU LAYI HO JO KI EK NEWS CHANNEL KA DIL MAANA JAATA HAI..HOPE U ADD SOME LINES ABOUT ASSIGNMENT ALSO..VERY SIMPLE ARTICAL IN VERY SIMPLE LANGUAGE
starting is better far not best so keep it up for improvment...
best of luck ashish team
लिखती रहिये, शुभकामानाएँ।
बहुत खूब, परदे के पीछे की हकीकत को परदे के सामने रख दिया। ऐसे ही लिखती रहो, शुभकामनाएं। ब्लॉग की इस दुनिया में स्वागत है आपका
सारिका जी,
बच्चन जी ने लिखा -
पी पीने बाले चल दे़गे हाय ना कोई जानेगा
कितने मन के महल ढहे
तब एक बनी थी मधुशाला
आत्म प्रकाश शुक्ल लिख्ते है़ -
देखने के बाद मे़ जो अनदिखा वो रूप है
दिख रहा वो द्रिष्टि का विस्तार है दरशन नही है.
बहुत ही अच्छी बात कही आपने। अखबारों में भी ऐसा संकट होता है। लोग नाम छपने वाले को ही अखबार में काम करनेवाला समझते हैं, लेकिन लोगों को यह कौन बताये कि सब एडिटर से लेकर डेस्क के अन्य साथी भी एक-एक खबर के पीछे अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। आपका स्वागत है मीडिया से जुड़े एक और ब्लॉग के साथ। वैसे मैं भी मीडिया से जुड़ा हूं। प्रिंट मीडिया में हूं, इसलिए शायद आप पहचान भी न पायें। आप अगर रांचीहल्ला में योगदान करना चाहेंगे, तो खुशी होगी। अपना मेल आइडी ranchihalla@gmail.com पर भेज दें, तो अच्छा होगा।
thanks sarika ji...itni jaankariyaan dene k liye...mujhe aisa hi lagta tha k sirf anchor hi important hota hai...aaj samajh me aa gaya...
सारिका जी सही लिखा आपने...अच्छा लिखा आपने...
sarika ji aap ladki hain isliye dekhti jaiye comment dene walon ka tanta laga rahega..apki har sadharan lekh ko log pani pi-pi kar tarif ke pul bandhenge..kyunki aap jo dikhti hai. wahi apko bechega yani papular kar dega..
sahi kaha tumne sarika..newschannel k kaam k baare mai na janne vale logon ko yahi lagta hai ki sirf anchors hi hote hai newschannel mai..tumhare iss article ko padkar shayad logon ko kuch akal aaye..:P
दरअसल इस पुरे मसले में गलती न तो न्यूज़ रूम की है न दिखने वालों को ही पत्रकार मानने वाले लोगों की..
मुझे लगता है की गलती दिखने की चाहत की है..
याद होगा आपको की किसी समय में कितने लड़के-लड़कियां घर छोड़ के मुंबई भाग जाया करते थे हीरो बनने... सिर्फ इसलिए की स्क्रीन पर चमकना है.. उस राह पर आज भी कई हैं लेकिन इन कुछ सालों में युवाओं के एक बड़े हिस्से को लगा की उससे बेहतर है टीवी में पत्रकार बन जाना,, टीवी पर दिखेंगे भी.. लोगों पुलिस वालों में रुतबा भी और पैसा भी... और फिर शुरू होती है अवसाद की कहानी.. पहले इंटर्नशिप फिर नौकरी और फिर एंकर-रिपोर्टर बनने की चाहत... कुढ़न भी की मै तो फलने से अच्छी दिखती हूँ.. या मै उस रिपोर्टर से ज्यादा अच्छा बोल सकता हूँ वैगारह-वगैरह..
जब हम आप खुद न्यूज़ रूम से जुड़े हर काम को पत्रकारिता मानना शुरू कर देंगे... दुनिया भी सुधर जायेगी...
शुभकामनायें....!!!!!
www.nayikalam.blogspot.com
और हाँ एक बात और... बुरा मत मानियेगा लेकिन दिल पर हाथ रख कर सोचियेगा की क्या लड़कियों को सच में मीडिया से इस तरह की शिकायत करने का हक़ है क्या....?????
बात एकदम सही है और हम आप मिलकर ही इसे बदल सकते हैं। आखिर हम भी फ़िल्में देखते समय कितनी बार सोचते होगे कि लाइटमैन ने किसी सीन में कितना मेहनत ही होगी।
amit shukla
ye bat sach hai ki tv me parde ke peche be bahut sare log hite hai. example le to samaj me aaye ga ki print me poora credit reporter ko jata hai' but desk ke apne importance hote hai. mano ya na mano lekin cheete(ant)ke importance mountain se jyada hai.
आज फ़िर आप ने सच से सामना करा दिया.......
मीडिया में तो दूसरो का दर्द ही बिकता है....
कोई मर जाए तो ख़बर ....किसी की इज्जत लुट जाए तो ख़बर
किसी का घर टूट जाता है और हमारी ख़बर बन जाती है.....
क्या इसी का नाम मीडिया है....???????????????????
एक और सच ..........
Anek shubh kamnayen...!
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
Aur, haan, har profession me uske achhe bure pehloo hote hain...afsos, aksar, ham bure pahloo kee or adhik dhyan dete hain...aapne achha likha hai..!
मै आपकी बात से सहमत हूं, बल्कि मै तो कहता हूं कि सुंदर से चेहरे के पीछे का सारी ताकत तो असल में उसके डेस्क या न्यूजरुम के लोग होते हैं।
मैना... तेरी उड़ान अच्छी है... बयान अच्छे हैं... लेकिन तू टीवी पर दिखाई नहीं देती
sahi kaha hai naapne jo dhikhta hai vo hi bikta hai.... mai bhi aap jaisahi karib 1.5 saal se is field mai hun ... samajh sakta hun aapko.. par padne mai maja aaye ye sahi .. per dikhoge nahin to kaun hai jo kah sake ki aap TV chennal mai ho.. so jo dhikhta hai vo hi bikta hai......
aap ne thik likh hai ....lekin slogan thik nahi lag ^^"जो दिखता है वही बिकता है !"yeh t.v. waloka nara hai...patna mai ke mahila ke sath kuch logo ne jo kiya use media ne dekha diya....jinda..jee ha.."जो दिखता है वही बिकता है !" mera manana hai ki nahi hum jabaran dekhate hai...janata galat chij nahi dekhana chahati hai....
no doubt ur artical is super....
but tumhe transport vale dhond rahe hai, bol rahe the ki rooj subah subah hum hi pick up karke laate hai... aur sarika ji hume apne artical main jikar karna hi bhool gai hai.... arre bhaai trasport dept. ka bhi pura sahyug hota hai kisi bhi khabar k piche.... ( m i r8 na ???)
turant apni galti main sudar kare....
no doubt ur artical is super....
but tumhe transport vale dhond rahe hai, bol rahe the ki rooj subah subah hum hi pick up karke laate hai... aur sarika ji hume apne artical main jikar karna hi bhool gai hai.... arre bhaai trasport dept. ka bhi pura sahyug hota hai kisi bhi khabar k piche.... ( m i r8 na ???)
turant apni galti main sudar kare....
सही कहा आपने ....और शायद दिखने का ही लालच है जो हम जैसे एंकर्स बेमन, से मन से ,चाहते हुए, न चाहते हुए भी दिखना चाहते है लेकिन बधाई के असली पात्र वही लोग हा जिनकी मेहनत पर्दे के पीछे छिपी होती है औक सबसे अच्छी बात ये लगी जिनकी वजह से कइ लोगों के काम को कोई नही जान पाता यानी की एंकर्स उनके योगदान को भी आप नही भूले