इंटर्न था....'मरता न तो, क्या करता'।
न्यूज़ चैनल का न्यूज़ रूम जहां एक ही शिफ्ट में इंसानों के सभी प्रकार नज़र आते हैं। एक जाति जिसे सब जानते हैं वो है इंर्टन, जिनमें से कुछ सपनों की तलाश में तो कुछ सपनों की मल्लिका को ढूंढ़ते हुए यहां तक पहुंच जाते हैं। यहां ऐसे लोग भी हैं जिनके लिए ये मौज मस्ती की जगह है। जहां वो पचास रुपयों का परफ्यूम दाये-बाये छिड़कर इस दुनिया में चले आते हैं, जो बाहर से रंगीन और अंदर से काली है। मैनें भी हाथों में पत्रकारिता का झंडा लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कॉलेज से मॉसकॉम किया फिर क्या था दिल में जिद और आंखों में जुनून लिए मैं भी चला आया इस सो कॉल्ड न्यूज़रूम में, जानता हूं आज न तो पत्रकारिता रह गई है न कोई पत्रकार, न्यूज़ रूम में जब भी कोई ख़बर आती है सब लुटे-पिटे से उसके पीछे पड़ जाते हैं। अरे भाई मैं भी क्या लिख रहा हूं जो आप सब जानते हैं। मेन बात ये है कि इस काली दुनिया की कालिमा ने मुझपर ऐसा वार किया की आज बहुत सारी चीज़े काली ही नज़र आती है। उन दिनों मैं इंर्टन था किस्मत देखिए काम करने का मौका जिनके अंडर मिला वो थे एंकर..... "खैर वो अभी भी है" बन्दा ऐसा की क्या बताओ बॉस, बोले तो एक नम्बर का ठरकी, चालबाज़ और सबसे बड़ा मतलबी और न जाने क्या क्या !!! ...जिनके मुख से सिर्फ अंगार बरसते है, आवाज़ और तेज हो जाती अगर सामने बॉस खड़े हो...अपने नंबर बढ़ाना उनका मुख्य काम है और गलती पर गलती करना उनकी हॉबी, गड़बड़ खुद से होती और गाली दूसरों को देते...एक बार बॉस के साथ चौड़े होकर खड़े हुए एक लड़की को डॉट रहे थे.. पता चला अपनी गलती की सज़ा उसे दे रहे हैं, वो सिसक-सिसक कर रो रहीं थी और मैं कुछ न बोला चुप था बिल्कुल चुप, क्या करता, मैं भी तो इंर्टन था। यहां तो हम जैसो को ये अपने बाप का नौकर समझते हैं जो मन में आया कह दो, जो समझ में आए करवा लो, एक बार जैसे ही ऑफिस में आया जनाब मेरे सामने खड़े थे मानों गिद्ध की आंखे शिकार को ढूंढ रहीं हो....अचानक बोले "जाओ जल्दी बाहर जाओ, मेरे लिए एक गुटका ला दो" मैने पलटकर कहा "क्या" बोले सुना नहीं तुमने जाओं गुटका लेकर आओं, भाई पान की दुकान पर मिलता है। ऐसा लगा जैसे पैर के नीचे से ज़मीन निकल गई हो, पर वहीं बात इंटर्न था, मरता क्या न करता, गुस्से का घूंट पीकर रह गया, सोचा हिम्मत कैसे हो गई इसकी मुझसे कहने की...लेकिन समझौता करना पड़ा बॉस जो था। ... खैर उसकी इज्जत तो न में पहले करता था न आज सब उसके बारे में जानते हैं टपोरियों की तरह आते जाते लड़कियों को कमेन्ट करता है जो इंटर्न है वो मुस्कुराकर सुनती और बाकि मुंह पर जवाब दे देती हैं। ये कोई इन्हीं का किस्सा नहीं है,आजकल न्यूज़रूम में इन जैसे पत्रकारों की गिनती बढ़ती जा रहीं है और भी लोग है ऐसे... एक महान इंसान को सुनकर लगता है कि इन्होनें गालियों में पीएचडी की है बिना वजह मुंह से प्रवचन निकलते रहते है कुछ तो ऐसे जिनकों देखकर लगता है कि लड़कियों से हॉय हैलो करने के अलावा इनके पास कोई काम नहीं और मज़े की बात ये है कि ये वहीं लोग है जिन्हें कभी मैं कैमरे पर देखकर अच्छा इंसान समझता था। पर्दे पर सभ्य होने का दावा करने वाले ये लोग इंसानियत का 'इ' भी नहीं जानते पर छोड़िए हम सब समझदार हैं...अंत में एक बात जो सबसे कहनी है आज भी जोश कम नहीं हुआ आज भी हौसला बरकार है वैसे ही मौज मस्ती कर रहां हूं जैसे पहले करता था क्योकि आज जान चुका हूं कि मुझे ऐसा नहीं बनना हैं.........सलाम जिन्दगी के लिए अमित शर्मा।

अपनी राय ज़रूर दें।
24 Responses
  1. Vikas Kumar Says:

    sharma jee,
    padh kr achcha laga bt ek shikayat rahegi aap log unka name kun nahi lete taki ham jaise patrkaar bhi unhe pahchan saken jo news room me nahi hote.
    mai janta hun ki isse naukri pe dikkt aa sakti hai bt name chupa ke bhi to post kiya ja sakta hai....
    ya aisi koi hints hi de diya kijiye ki sanp bhi mar jaye or lathi bhi na tute....


  2. Unknown Says:

    मेरे प्यारे सबसे अच्छी बात पता क्या है...तुम्हारी हंसी और तुम्हारी मस्ती..जहां तुम हो वहां क्या-क्या होता है सब जानती हूं मगर तुम कितनी समझदारी से आगे बढ़ते जा रहे हो इसके लिए...मोटू तुम्हे सलाम।


  3. दर्द तुम्हारा बिल्कुल ठीक है.. लेकिन ये मुझे भी जानना है, कि आखिर वो जनाब कौन हैं, और ये सारा घटनाक्रम हुआ कहां था...



  4. बेनामी Says:

    Bhaai,

    ye sab nautanki machaye ho.

    Himmat hoti to wahi boss ko kuchh bole hote. aaj usi ke diye certificate ka sahaara lye kahn tum naukreee kar rahe hoge.
    what u have done is OPPORTUNISM.
    HAVE GUTS MAN.
    i am also in a prvt firm and boss saalo kp apne angoothe par rakhta hoon. itna kaam karta hoon ki unke baap bhi mujhe nikal nahi sakte par main un saalo ka jabaav diye bina chhodta nah hoon


  5. बेनामी का पापा -vijay Says:

    बेनामी साहब ,
    आपको बधाई की आपने अपने आप का विश्लेषण कुछ ही शब्दों में कर दिया ,लेकिन शायद आप यह भूल गए की हम संस्कारी लोग है ,जिन्हें मां बाप से अच्छे संस्कार और बेहतर पालन पोषण मिला है ,अब इसमें में मेरी क्या गलती ...यह संस्कारों का विषय नहीं तो और क्या है की बोस साला बन जाता है ,और रही बात प्रतिक्रियायों की तो सवाल मानसिकता का है .....मुझे डर है की आप जेसे बहादुर लोग बोस को उँगलियों में नचाने की हिम्मत रखते है पर टिपण्णी ना जाने क्यों बेनामी के नाम से ही देते है
    भाषा एक हो ,तो बेहतर है ,समझ नहीं आता ..आप हिंदी में लिखना जानते है या फिर अंग्रेजी में ....क्षेत्रवाद का प्रभाव है ,संतुलन बनाए रहे ....
    आप को ऊपर वाला सद बुद्धि दे
    सलाम ज़िन्दगी


  6. राजीव Says:

    चुल्लू भर पानी में डूब मरो ....बेनामी साहब
    डरो न सलाम ज़िन्दगी
    यह जिसने कमेन्ट किया है...मैं उसे जानता हूँ .खुद को कुछ आता नहीं ....सिर्फ बहस करना आता है
    .....बेनामी वही है जो अनाथ है .....जिसका माँ और बाप में नाम नहीं रखा ..............
    राजीव


  7. संदीप Says:

    बहुत सही लिखा है राजीव आपने लेकिन ऐसे बेनामियों को तो पानी भी डूबने का अवसर नहीं देगा ..सही बात है भगवान इन्हें थोड़ी हिम्मत दे क्योंकि ये किस तरह बॉस को अपनी ऊंगली पर नचाते है मैं खूब जानता हूं..बेनामी साहब जूते चांटने और वाकई हिम्मत होने में बहुत फर्क होता है..वैसे अमित यार तुम्हें मेरा सलाम..


  8. Unknown Says:

    भाई बिल्कुल ठीक कह रहे हैं आप लोग... मीडिया की दुनिया ऐसी ही है.. बाहर से रंगीन अन्दर से स्याह काली...
    न्यूजरूम ऐसी जगह ही है जहां मौजूद हर शख्स धन पिपासू, यौन लोलुप, और दोयम या शायद चौथे दर्जे तक का स्वार्थी, मतलबी और मुंह से अंगार बरसाने वाले लोग ही होते हैं....
    और भगवान बचाए इन साले टीवी चैनल वाले पत्रकारों से.... ये तो साले इंसान हैं ही नहीं .. इन सब के तो दिल में इतनी मलिनता, इतना कालापन होता है कि शायद काला रंग भी शर्मा जाए....
    पत्रकारिता का धंधा साला इतना गंदा है कि पूछिए मत... पता नहीं क्यों पुलिस और कानून की नजर इस धंधे के उन "बेचारों" पर नहीं जाती जिनमें से शायद सौ प्रतिशत लोगों के साथ बलात्कार होता रहता है... किसी के साथ शारीरिक तो किसी के साथ ''मानसिक''....
    पत्रकारिता ने अपने मापदंड, अपने मूल्य तो जाने कब के तोड़ डाले थे पर अब तो ये इन्डस्ट्री पैसा कमाने के लिए खुद का शरीर भी बेचने लगी है....
    यकीन मानिये कुछ दिनों पहले तक मुझे भी मीडिया की ये हालत देख बड़ा दुख होता था... पर जब से आप लोगों का आना हुआ मतलब सलाम जिन्दगी के दर्शन हुए मुझे यकीन हो गया कि आप ही लोगों के हाथों इस इन्डस्ट्री का सुधार हो पाएगा.....
    या एक रास्ता और भी है...टिप्पणी कुछ तल्ख लग रही हो तो माफ करियेगा लेकिन अगर आप सब की नजर में मीडिया इतनी बुरी ही है तो प्लीज इस धंधे को अपनाने से तौबा कर लीजिए... आपकी जिन्दगी भी बच जाएगी और बेचारा मीडिया भी बच जाएगा गालियां खाने से....
    माना हमारे धंधे में कुछ बुराइयां हैं... कुछ हद तक संवेदनहीनता भी है लेकिन इसका ये अर्थ तो हरगिज नहीं निकलता न कि हम किसी एक बुरे आदमी को देख कर पूरे शहर को गंदा कहना शुरु कर दें.....
    हमारे देश की पुरानी रवायत रही है... जब अपनी फील्ड में कुछ उखाड़ न पाओ तो अपने से सीनियरों और दिग्गजों को गालियां देना शुरू कर दो... जो लड़की न पटे उसे रं..... कहना शुरू कर दो....।
    आप सब तो होनहार नए जोश के युवा हैं, आप ऐसी रवायत नहीं अपनाएंगें ऐसा मेरा वि·ाास है....।।।।
    पता नहीं क्यों लेकिन अपने धंधे की आप लोगों के मुंह से इतनी फजीहत सुन कर अच्छा नहीं लगा... अगर आपको मेरी किसी बात का बुरा लगा हो तो ये मान लीजियेगा कि मैं बेवकूफ हूं....
    मेरी नजर में अब इस सिलसिले को बंद कर दें तो अच्छा रहेगा.. हालांकि मेरी नजर में ये बहस का मुद्दा हर्गिज नहीं है लेकिन फिर भी आप कुछ कहना चाहें तो स्वागत है... ताकि हम सब कह सकें... सलाम जिन्दगी... सलाम पत्रकारिता....।
    www.nayikalam.blogspot.com


  9. kamya bhattacharya Says:

    amit yaar tumne to wakai sachai ko itne behtar tarike se bayan kiya...aur abyaz sir thoda aur concentrate karna aapko pata lag jayega warna hum hi bata denge...keep it up dude..haan sahi mein tumhe aur hame inki tarah nahi bana...salam zindagi


  10. kamya bhattacharya Says:

    amit yaar tumne to wakai sachai ko itne behtar tarike se bayan kiya...aur abyaz sir thoda aur concentrate karna aapko pata lag jayega warna hum hi bata denge...keep it up dude..haan sahi mein tumhe aur hame inki tarah nahi bana...salam zindagi


  11. बेनामी Says:

    bilkul sahi likhe ho amit bhai maine bhi intern me aise logo ka samna kar chuka hu wo bhi kafi kuch aisi hi harkate karte the pata nahi aise ligo ko kis aadhar pe itni achhi jagah job mil jati hai aur ye log apne under kaam karne wale ko samjhte kya hain par mazboori sabse badi cheez hoti hai dost jiske aage sabko jhukna hi padta hai...


  12. rohit mishra Says:

    aise logo pkke beshrm hote hai amit je.. aise logo ki g*** pr dande marne chahiye .... aap shi me dilkush insan prteet hote hai ..jo hr kthnayio me jindgi ka poora lutf utha te hai dost ..aur achi pictue lgae ho apni...


  13. soniya sharma Says:

    mast likha hai yar .... i like it.... head off 2 u.....aal t best yar tk cr..


  14. soniya sharma Says:

    mast likha hai yar .... i like it.... head off 2 u.....aal t best yar tk cr..


  15. Amit,tumhe itna darna nahi chahiye that.Tumhe protest karna chahiye tha.Maine bhi Zee news ke online department main isi saal intern ki thi.Mere sath aisa kuch nahi ghata,per tumne jo haalat pesh kiye hai wo aaj har channe ki hai.Ek baar phir kahunga tume protest karna chahiye tha.Better luck next time.


  16. Neha Says:

    amit yeh sab padh ke mujhe phir se sab kuch yaad aa rhaa haii.... wo purane din jab hum dono ek sath internship kr rhe the... pal pal lagta tha ki koi torthcer kr rhaa haii.. hr waqt dum ghuta tha us admi ke sath kam krke .... aur tujhe yaad haii mein tujhe aur tu mujhe kitna hosla diya krte thee.... hr waqt mein yeh hii sochti thii kiya yeh hii patrkarita haii....


  17. Neha vaibhav Says:
    इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

  18. अच्छा लिखा है इसमें दो राय नही है लेकिन सलाम जिंदगी से एक शिकायत है ...की आप लोगों को गिलास हमेशा आधा खाली ही दिखाई क्यों देता है इसे भरा देखने की कोशिश भी करें और ये तो जिंदगी के वो लम्हे है जो जब तक पेश न आये तो मानों की हमने कुछ देखा ही नही जिंदगी में ...जमाने में बहुत से गम है लेकिन जीना तो नही छोड़ा जा सकता न.... उम्मीद करता हूं की कुछ उम्मीद जगाता हुआ भी पढ़ने को मिलेगा ....


  19. kshama Says:

    अच्छा लिखा है अपने.जितना अच्छा लेख है उतनी ही अच्छी टिप्पणियां भी हैं. लेकिन जो बातें अभी आपको बुरी लग रही हैं शायद कल आप भी वहां पहुच कर वही सब करो.इन समझौतों और संघर्षों के बीच आपकी इंसानियत बची रहे यही कामना है .


  20. ziya khan... Says:

    koi kuch bhi khe jindagi me jo halat insaan ke samne aate hai use us waqt unse hs kr ya ro kr samjhota krna hi pdta hai... bad me slah to duniya muft banti firti hai .... aur moke pr slah dene wale bhi khi na khi kisi ki chatukarita krte hue hote hai.... dost tum khul ke likhe tumhe bdhai .... mt suno idhr udhr ki bs apni kro mn ki .....jiyoo


  21. SATYA Says:

    sab ek dum badiya likha aapne .
    kabile tarif hai .magar ese salam jindgi nhi jani jati sharma jee .
    agar kuch sach mai karna chahte hai phir kishi ke sath esha na ho to dar kayo nam na likhne ka ????
    vaise bhi aap nam likh kar, kar bhi kaya logo ?????????
    aur jo log ye nam puchana chate hai kaya vo ye sab mai shamil nahi hai ??????


  22. चीज़ों को बाद में कोसने से बेहतर है सामने ही कुछ कह दिया जाए। यानि जिस वक्त आप सामने कुछ नहीं कह रहे होते, आपके मन में भविष्य का सवाल कौंध रहा होता है। यही कायरता है, और उससे भी बड़ी कायरता होती है बाद में कोसना। एक ही फंडा रखो, या तो चुपचाप सहते रहो और वक्त आने पर कर्म से जवाब दो...। नींव हिला दो...। बाद में सिर्फ कोसने से कुंठा बाहर निकल सकती है लेकिन समस्या का हल नहीं। अगर अपने अपमान का बदला लेना है तो खुद को व्यथित या बेबस साबित करके सहानुभूति नहीं पानी है। कठोर कदम उठाकर समर्थन प्राप्त करना है।

    कथन का मूलभाव समझो, इंटर्न होना विवशता नहीं होनी चाहिए...।
    कोई आदमी मजबूर तब तक नहीं होता जब तक वह खुद हार न माने। हालांकि मौके की नज़ाकत को समझकर खामोश रहना सही है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि बाहर जाते ही गरियाना शुरु कर दें।

    और बेनामियों पर कमेंट भी बेनामी ही कर रहे हैं ये सोचने वाली बात है। इन बेनामियों ने तो कहर मचाकर रखा है।


  23. VAIBHAV Says:

    amit sharma tumhara artical padha achcha laga, lekin dost ek baat kahoon ki woh bosses jo apne ko bosses kehte hain asal mein boss kehlane ke layak nahin hain aur woh ye bhool gaye ki woh bhi kabhi "ye so called Intern rahe honge" agar har insaan apne past ko yaad karle ki woh bhi kabhi Intern raha hoga agar woh apna beeta hua kal yaad kar leta to shayad kisi ko aisa kam ya kisi ke sath aisi badtamiji nahin karta chahe woh intern ho ya nahin aur ek baat ki kuch log hote hi aise hain jo aisa jan kar aisa karte hain lekin woh shayd ye bhool jate hain ki is choti si media line mein kabhi bhi kuch bhi ho sakta hai aur nahin to kam se kam woh apne aapko dosron ki nazar mein giraraha hai.


  • EXCLUSIVE .....:

    salaazmzindagii

    अशोक जी को कोटि कोटि नमन -- सलाम ज़िन्दगी टीम miss u ashok sir

    ASHISH JAIN


    सुधी सिद्धार्थ ..........

    ज़िन्दगी का हिस्सा बनें और कहें सलाम ज़िन्दगी

    सलाम ज़िन्दगी को जाने ..

    मेरी फ़ोटो
    वर्तमान में एक न्यूज़ चैनल में कार्य कर रहा हूँ,पत्रकारिता की शुरुआत जनसत्ता से की .जहा प्रभाष जोशी, ओम थानवी और वीरेंद्र यादव के साथ काम करने का मौका मिला ,उसके बाद पत्रकारिता की तमाम गन्दगी को अपनी आँखों से देखते हुए आज तक में ट्रेनिंग करने का अवसर मिला वहा नकवी जी,राणा यसवंत ,अखिल भल्ला ,मोहित जी के साथ काम किया तक़रीबन ६ महीने वहा काम करने के बाद आँखों देखी से होते हुए एक बड़े न्यूज़ चैनल में एक छोटा सा कार्य कर रहा हूँ या दूसरे शब्दौं में कहूँ तो मन की कोमलताओं को हर रोज़ तिल तिल कर मार रहा हूँ ,लिखने का शौक है ,कुछ अखबारों में सम्पादकीय भी लिखे है ,लेकिन हकीकत यही है की आँखौं से बहते हुए आसूँ इतनी तकलीफ नहीं देते जितनी पलकों पर रुके हुए मोती करते है ,शायद इसीलिए मैं आज जहा हूँ ,वहा से सिर्फ अँधेरा दिखता है ......ASHIISH JAIN