धीमी सी आवाज़ ,माथे पर उम्र की झुर्रियां ..शांत सी छवि,एक शानदार होंसला ..और एक कामयाब लिखावट जो तीर से भी तेज़ चुभती है प्रभाष जोशी का मतलब क्या है ...क्या वो एक ऐसे इन्सान थे ,जिनकी कलम ने कई जादू बिखेरे ...या फिर वो एक ऐसे लेखक थे जिन्हें बगावत करना आता था ,उन्हें ज़माने से लड़ना आता था वो जानते थे की इस देश में गरीबी का मतलब क्या होता है .वो जानते थे की हिंदी और हिन्दुस्तान का मतलब क्या है ..बस आज यहीं सोचता रहा ,कुछ चैनलों ने इस खबर को ..माफ़ी चाहूंगा आज "खबर" नहीं ...पत्रकारिता की इस त्रासदी को बेहद शानदार तरीके से चलाया ,शायद वो जानते थे की यह खबर नहीं है .....यह हिंदी पत्रकारिता के भीष्म पितामह का अंत था एक ऐसा अंत जिसे कभी कोई पूरा नहीं कर पायेगा ,यानी पत्रकारिता की अब तक की सबसे बड़ी त्रासदी ,जिसने आप से ..मुझसे एक गुरु और अपना आदर्श छीन लिया ,...आखिर ऐसी क्या बात थी की क्रिकेट का महा नायक भी फूट फूट कर रोने लगा
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मैं उन्हें विस्फोटक पत्रकार कहूँ तो शायद गलत नहीं होगा .....दरसल विस्फोटक उनके शब्द कोष का एक शब्द है जो मैंने उनके हर लेख में पाया जिनमे सचिन मौजूद है,......मैंने उन्हें पहली बार जनसत्ता में ही देखा था ,उन्होंने कहा था ऐसा लिखों की आत्मा तर जाए ...बेटा वही लेखक होता है .......
दरसल उन्हें मालूम था कि इस आधुनिक पत्रकारिता का यह नाजुक संतुलन, ये खूबसूरत लचीलापन, ये रोशनियां, ये चमक-दमक पत्रकारिता के लिए नहीं.. यह एक बड़े कारोबार के लिए है। शायद इसलिए वो अंत तक कहते रहे
की पत्रकारिता का बदलाव कई संकट पैदा कर सकता है ..वो कहते थे की आपको आत्मविश्वास और कामयाबी से भरपूर नजर आना है, डर को दबाना है आक्रामक लिखना है ,सच लिखना है चूँकि जब ये तराश नहीं रहेगी, जब वक्त की रेखाएं आपके जिस्म पर दिखाई देने लगेंगी, उस वक्त जिंदगी की आपाधापी में आपके पांव नहीं कापेंगे ,दरसल वो जानते थे की आत्मा सबसे ज्यादा पवित्र होती है सुंदरता तन से कहीं ज्यादा मन में होती है, दृश्य से कहीं ज्यादा आंख में होती है, वो तराशी नहीं जाती, अपने वजूद और अपनी शख्सियत की एक-एक शै के बीच ढलती है, और बहुत कम ऐसे मौके आते हैं जब वो अपनी पूरी कौंध के साथ दिखाई पड़ती है। दरसल वो जानते थे की कलम एक जादुई छड़ी के समान है ,जिसका उपयोग आप सभी कर सकते है,जहां जहाँ तक उनकी लेखनी की चमक पहुची ......वहां -वहां रुलाइयों की कराहने वाली आवाज़ सुनाई दे रही थी ,लोग कहते दिखे वो शानदार पत्रकार थे ,जिन्होंने बिना कोई ओहदा लिए पूरे पत्रकारिता जगत में अपनी पहचान बनाई , आज कई पत्रकारिता के दिग्गजों को न्यूज़ चैनलों पर सुना ,सब पत्रकारिता के दिग्गज एक साथ .....लेकिन कोई आवाज़ नहीं ,आज कोई चिल्लाहट नहीं ..कोई भागम दौड़ नहीं ,कोई ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं ....कोई फ्लैश नहीं ,कोई टी ०आर ० पी ० नहीं .सबकी आँखों में नमी ....नमी अपनों को खोने की ....हर तरफ मातम सिर्फ मातम और कुछ नहीं ....सच यहीं है की ख़बरों के बीच आज अपना कोई खबर बन गया .....और अचानक पत्रकारिता का एक अध्याय खत्म हो गया ,वो अध्याय जो स्वर्णिम था ,जो अब कभी नहीं लौट कर आएगा
प्रभाष जी को हमारा शत शत नमन
आशीष की पेशकश
आशीष. सचमुच प्रभाष जी पत्रकारिता के भीष्म पितामह थे। हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों मीडियम पर ही उनकी ज़बरदस्त पकड़ थी। मैं तो उन्हे पर्सनली जानता था और उनसे कई बार मिला भी था... उनके निधन के बारे में सुनकर ही मुझे तगड़ा झटका लगा... भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।
Yes he was and will remain a legend...which is proved by the fact that journalist of your generation are also touched by what he wrote... and i count you as the torch bearer of that legacy...Nishant
miss u sir ...
GOOD ARTICLE......ASHISH ...
"ख़बरों के बीच अपना कोई खबर बन गया .....प्रभाष जी को हमारा शत शत नमन
विश्वास ही नहीं होता....
प्रभाष जी के निधन पर हमारी विनम्र श्रद्धांजलि .
- विजय तिवारी ' किसलय '
bhaawook kar diya bhaai .........
शत शत नमन
Apporniya Kshati Hai Patrakarita Jagat ke Liye.
shat&shat Naman
ji bhai pitamaah ko abhi is jaahan se ruksat nahi hona chahiye tha.... shayad wo mahasangram se pehle hi chale gye or ab shayad is mahabharat mai jane kya hoga.
sir i miss u u r very important for every journalist
हिंदी पत्रकारिता के लिए प्रभाष जोशी का जाना पत्रकारिता के मौलिक उद्देश्यों को वास्तविक तथा भावी स्थिति तक बचाए रखनें का एक बड़ा संकट खड़ा कर देगा। प्रभाष जी केवल पत्रकार नहीं, पत्रकारिता के पर्याय थे। प्रभाष जी ने पैसा, प्रेस और पत्रकारिता का भेद बता दिया था। जो आज तक कोई समझा ना पाया था। शत् शत् नमन्...
bilkul patrakarita mai hue ye chati koi puri nahi kar sakta....
jai-hind sir
MISS U SIR .......