कहते है वक़्त की हर शय गुलाम होती हैं..मगर अब ये आपका गुलाम हो सकता है ,जरूरत है तो बस वक़्त की मंडी मे आ
ने की, हर तरह का वक़्त मिलता है यहां सौ रुपए घंटा, हज़ार रूपए घंटा, और तो और एक एक मिनट भी..मगर कुछ लोग ऐसे भी है जो सूनी निगाहों से खरीदारों को इस उम्मीद से देखते है की शायद आज का पूरा दिन 80 रूपए में ही बिक जाये..बस बोली लगाईये और वक़्त के खरीदार बन जाईये.....पहले वक़्त गुजरता था मगर आज वक़्त बिकता है.. कभी घंटो गुजर जाते थे
उधड़े रिश्तो को बुनने मे,रूठी उम्मीदों को मानाने मे, छोटी बहन को सताने मे और शाम को माँ के साथ खाना बनाने मे और याद है वो दिन, शहर के
नुक्कड़ पर बने पुराने कॉफी हॉउस मे दोस्तों के साथ लड़ना झगड़ना और आंखों मे छोटे छोटे सपने जाना....सपनो को सजाने की चाहत में मैं भी कब इस मंडी की सजावट बन गई पता ही नहीं चला..आज यही एक कोने में खड़ी अपना वक़्त बेच रहीं हूं 9 घंटे बिक चुके हैं और 10 घंटो की अभी भी गुंजाईश है....कोई है खरीदार क्यूंकि ये वक़्त बिकाऊं है...
time hai abhi bahut hai............
aaj nahi kal karenge .kal nahi parso.....puri life gujar jati hai. han bus kuch buchpan ke kubsutrt lamhe yaado ke nagine mein saje se rah jate hai............
anjule shyam maurya
ठहरे हुए पानी ने इशारा तो किया था
कुछ सोच के खुद मैंने ही पत्थर नहीं फेंके...
वैसे तो इरादा नहीं तोबा शिकनी का
लेकिन अभी टूटे हुए साग़र नहीं फेंके...