वी ओ आई के इस मातम का कोई नाम नहीं
मैं नहीं जानता की उस वक्त क्या हुआ था ,वो क्यों हुआ था ,मैं तो बस इतना जानता हूँ की एक पत्नी ने अपने पति को खोया है, एक बच्चे ने अपने पापा को खोया है ,मैं नहीं जानता की ऐसा क्यों हुआ है मैं तो बस इतना जानता हूँ की खबरों की आपाधापी में अपना भी कोई खबर बन गया,एक सितारा जो अब कभी नहीं चमकेगा ,मैं तो बस इतना जान
ता हूँ की ११ साल के बेटे के हाथ में भी वो जादू नहीं जो वो अपने पापा को जगा दें..... मेरे पूछने पर वो कुछ सोचने लग जाते ,फिर उदास भरी मुश्कराहट ,मानो वो कहते दिख जाते ...हाँ मैं उदास
हूँ ,मेरा शांत होने में दरसल कई लोगो का भला है इसलिए मैं अब शांत रहता हूँ ताकि किसी को दर्द न हो.कहीं हम लोग गुनहगार तो नहीं ...जो हुआ ,वो शायद किसी गुनहगार के साथ ही होता है .... ,आज वो हमारे बीच नहीं है ,कुछ मिनटों पहले जो व्यक्ति हम से मुस्करा कर बातें कर रहा था,वो कुछ ही देर में मिटटी में तब्दील हो जाएगा ,उनकी मौत पर हम सब सदमे में है, कई जिंदगिया बिलखती रही ,हम सब शांत खड़े रहे ,स
च यहीं है वो ऐसे व्यक्ति थे जिनकी कमी हम हर कदम पर महसूस करेंगे....एक कड़वा सच भी तो यहीं है ...
मरनेवाले तो बेबस हैं लेकिन जीनेवाले कमाल करते हैं.मैं नहीं जानता था की उस औरत को हम क्या जवाब देंगे जो अपने पति का सुबह दरवाज़ा खोलने के लिए इंतज़ार कर रही थी ,जिसके दरवाज़े में उसका पति तो आया पर वो अब बोलता नहीं,बेटे की जिद पर भी वो पिता अब मुस्कराएगा नहीं ,और अगर जिद छोड़ भी दी तो तो मानो अशोक जी कह रहे हो .. बेटा मुझे माफ़ कर देना ,मैं चाह कर भी जाग न पाऊंगा....बेशक तू मेरे गालो को खीचकर मुझे चीटर भी कह देना ,इसलिए एक नज़र उस रात पर जो कई दर्द सबको देकर चली गई ......
रात के 12 बजे मेरी शिफ्ट शुरू होती है,मैं रात को उनके साथ काम करने वाली टीम में था ,नाईट शिफ्ट लगभग किसी वनवास जेसी ही होती है,जहाँ खामोशी और आप अक्सर बातें करतें है,ख़बरों के लिए बेशक हम झूझते न हो ....पर अलसाई सुबह की खबरें अक्सर रात में जागकर ही तैयार होती है, ख़बरों से लड़ने का सिलसिला चलता रहता है,कल की रात भी लगभग हर रात जेसी ही थी ,हाँ हर बार की तरह वही ख़बरों के लिए बदहवासी में यहाँ से वहा .....और एक चुभन ....नाईट शिफ्ट होने से १/2 घंटे पहले मैं ऑफिस पंहुचा ,शाम या यूँ कहें की prime time की थकान उतारते लोग, अशोक उपाध्यय हमारे night shift के इंचार्ज थे
,स्वभाव से बेहद शांत और मेहनती इंसान ...जिनसे आप कुछ सीख सकते हो,लम्बा कद ,शानदार वोइस ओवर ,और जबरदस्त स्क्रिप्ट में महारथी ..... ,voi के साथ अशोक जी उस वक्त से जुड़े हुए थे ,जब वो शुरूआती दौर में था,जब त्रिवेणी मीडिया लिमिटेड का voi बंद हुआ ,तो अपने इस किले से लिपट कर सुबकने वालो में वो भी थे पर वो शांत खड़े रहे ,night shift में उनके साथ रहा ,उनकी बातों को महसूस किया ,ख़बरों से लड़ते हुए जब कोई चैनल आपस में लड़ता हुआ,किसी जूम जाम वाले कार्यक्रम पर चले जाते,तो मुश्कराकर कर रह जाते ,,रात को कितने पैकेज है जो एडिट होने है ,एडिटिंग टेबल और उसकी कला का क्या मतलब होता है , बखूबी वो जानते थे ,शायद जब bite के लिए हम किसी को बुलाते और कोई न आता तो वो अपना बीच में काम छोड़ कर आ जाते थे ,और यह सच है उनमे हमेशा एक सयम देखा ,वो चीज़ देखी ,जो निश्चित रूप से भटकी हुई नहीं है ,हमेशा शांत रहनेवाले और सबको प्यार करनेवाले हमारे अशोक सर अब हमेशा के लिए शांत हो गए हैं... यकीन नहीं होता... उनको याद कर कर के आंखें नम हो रही हैं... बार-बार उनका चेहरा आंखों के सामने आ रहा है... उनकी मीठी आवाज सुनाई दे रही है ... अगर हमसे कोई गलती हो भी जाए तो कभी भी उन्होंने हमें जोर से नहीं बोला... हमेशा समझाते बच्चे ऐसा नहीं ऐसा करो... हम उनसे अपने करियर से लेकर अपने परिवार तक की बातें शेयर करते थे... उनके चेहरे पर हमेशा एक मुस्कुराहट रहती थी जो दूसरों को भी मुस्कराने के लिए मजबूर करती थी...अपना सार काम ख़त्म होने के बाद वो तुरंत सीट पर बैठ जाते और अपना बनाया हुआ बुलेटिन देखते ,शायद कुछ रह गया हो ,मुझसे कहते रहे की ...बेटा वाजपेयी जी का जन्मदिन है ,उस पर एक vo ले लेना ,मैं अभी आता हूँ ना जाने कहा चले गए.....फोन किया तो पता चला की फोन नहीं उठा रहे थे ,तबियत खराब थी शायद दवाई लेने गए हो ,आवाज़ आई ...यह आवाज़ एक लड़की की थी ,जो डेस्क पर थी ....जबकि कुर्सी पर उनकी जेकेट रखी हुई थी ......वक्त बीतता रहा ,वक्त अब घर जाने का था ...हम निकलने लगे ....अशोक सर की कार से गुज़र रहे थे तो यह क्या ....सर कार में बेहोशी की हालत में लेते हुए थे ,मैं उनके सीने को देखा और मेरे साथी विपिन ने उनकी नब्ज़ देखी ....एक गहरी ख़ामोशी ....और कुछ नहीं ......हमने तुरंत ऑफिस में जाकर कहा...तुरंत उनको मेट्रो में ले जाया गया ...जहाँ डॉक्टरो ने उन्हें मृत घोषित कर दिया ......घर से मोहित सर उनकी पत्नी और उनके बेटे को लेने गए ,जहाँ से उनको संभालना था ,जेसे ही ऑफिस की गाडी अस्पताल पहुची ...लोगो की आँखों में आंसू फुट पड़ें ...वो वो व्यक्ति रोते हुए दिखा जो अपने आप को बेहद सख्त दिखाने की कोशिश करता है ,,,,हर तरफ मातम और कुछ नहीं ....लेकिन मुझसे सिर्फ इतना मालूम है की इस मातम का कोई नाम नहीं ..... मुझे तो बस इतना मालुम है की बड़े ही मेहनत से ऑफिस में रात को एक परिवार सजाया था ,ना जाने क्या हुआ ,किसी ने पूरा परिवार उजाड़ दिया, दीवार रह गई , अभी तक़रीबन ४बज़ है कुछ देर बाद मुझे फिर से ऑफिस जाना है ,अपने उसी परिवार को फिर सजाना है ,मैं नहीं जानता की सब केसे हो पायेगा,मेरी आँखें उन्हें जरुर देखेंगी ,उनके बिना न जाने केसे फिर वो शुरुआत होगी ,सवाल यही था उस परिवार का क्या होगा जो अचानक हाशिये पर आ गया ,उस बचपन का क्या होगा जो खोने के डर में बैठा है ,और बिलख रहा है उस पत्नी का क्या होगा जिसे अब भी लगता है की उनके पति लौट आयेंगे ........ लेकिन यह सच है की खबरों का सिलसिला इसी कदर चलता चला चला जायेगा ,तूफानों से लड़कर जिसे अपना आशिया सोचा मेरा अपना भी खो गया उसी आशिया में .आपको कोटि कोटि नमन ....
मिल के बिछड़ जाती है ,घडी की सुइयां तो केसे कोई साथ रहने की दुआ करे.......
aashish and sarika
,